तुम्हें ज़िन्दगी की पहचान होती तो ऐसे होते तुम? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर(2014)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
३० नवम्बर २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

दोहा:
मोहे मरने का चाव है, मरूं तो हरि के द्वार।
मत हरि पूछे को है, परा हमारे बार॥
~ गुरु कबीर

प्रसंग:
गुरु कबीर के अनुसार मृत्यु का क्या अर्थ है?
हरि के द्वार मरने का क्या अर्थ है?
क्या ईश्वर किसी विशिष्ट जगह पर रहता है?