कर तौबा तुरत 'फ़रीद' सदा हर शय नूँ पुर नुक़सान कहूँ
ए पाक अलख बे-ऐब कहूँ उसे हिक्क बे-नाम-निशान कहूँ
~ ख़्वाजा ग़ुलाम फरीद _________
उसको जानने का एक ही तरीका है कि ये जो सब कुछ है इसी में उसको देखो। चाय में भी वही है, कॉफी में भी वही है, दीवाल में भी वही है, चश्में में भी वही है, कपड़े में भी वही है, जानवर में भी वही है। पत्थर में भी वही है। पर सवाल वही है, इनमें नहीं दिखा रहा तो और कहाँ दिखेगा! आप शरीर में हैं, और शरीर तो इन्द्रियों से ही देखता है। इन्द्रियों से ही वो आपको नहीं दिख रहा तो वो आपको कहाँ दिखेगा!