शब्दयोग सत्संग, ११ मई, २०१९ अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
बुल्हा एथे रहण न मिलदा, रोंदे पिटदे चल्ले, इक नाम धन्नी खरची है, होर बिहा नहीं कुझ पल्ले, मैं सुफ़ना सभ जग भी सुफ़ना, सुफ़ना लोग बिबाना।
अर्थ: बुल्लेशाह कह रहे हैं कि यहाँ हमें रहने नहीं दिया जा रहा, हम रोते-पीटते जा रहे हैं। महाधनी प्रभु का नाम ही हमारा धन है जिसे हम खर्च कर सकते हैं और दूसरा कुछ भी हमारे पल्ले नहीं है। संसार स्वप्न है, शेष सभी लोग स्वप्न हैं, सब कुछ स्वप्न ही तो है।
~ बाबा बुल्लेशाह
दुनिया का झूठ पकड़ में क्यों नहीं आता? क्या दुनिया झूठ पर ही निर्भर है? क्या स्वयं और दुनिया का झूठ एक ही है? दुनिया की सही पहचान कैसे करें?