शब्दयोग सत्संग १० अप्रैल २०१७ अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से समस्तं कल्पनामात्रमात्मा मुक्तः सनातनः । इति विज्ञाय धीरो हि किमभ्यस्यति बालवत् ॥७॥
सबकुछ कल्पना मात्र है, और आत्मा नित्य मुक्त है, धीर पुरुष इस बात को जानकर, फिर बालक के समान क्या अभ्यास करे!
प्रसंग: तुम सदैव मुक्त हो, सब तुम्हारी इच्छा है ऐसा क्यों बता रहें है अष्टावक्र? आत्मा क्या है? आत्मस्थ कैसे हुआ जा सकता है? क्या आत्मा को पाने के लिए अभ्यास की जरूरत है?