प्राचीन सप्त पुरियों में से एक अयोध्या सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी रामायण के अनुसार विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापित की गई थी। स्कंद पुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है। यह हिन्दुओं की प्राचीन सप्त पुरियों में से एक है।
कौशल राज्य की राजधानी कहते हैं कि 'अयोध्या' शब्द 'अयुद्धा' का बिगड़ा स्वरूप है। रामायण काल में यह नगर कौश राज्य की राजधानी थी। बौद्ध काल में यह श्रावस्ती राज्य का प्रमुख शहर बन गया और इसका नाम 'साकेत' प्रचलित हुआ। कालिदास ने उत्तर कौशल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है।
बौद्ध काल में कहते थे साकेत दरअसल, बौद्ध काल में कौशल के दो भाग हो गए थे- उत्तर कौशल और दक्षिण कौशल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी। अयोध्या या साकेत उत्तरी भाग की और श्रावस्ती दक्षिणी भाग की राजधानी थी। इस काल में श्रावस्ती का महत्त्व अधिक था।
कहते हैं कि बौद्ध काल में ही अयोध्या के निकट एक नई बस्ती बन गई थी जिसका नाम साकेत था। जीपी मललसेकर, डिक्शनरी ऑफा पालि प्रापर नेम्स के भाग 2 पृष्ठ 1086 के अनुसार पालि-परंपरा के साकेत को सई नदी के किनारे उन्नाव जिले में स्थित सुजानकोट से जोड़ा है जहां के खंडहर इस बात का सबूत है।
अवध क्षेत्र में होने के कारण प्राचीन काल में कहते थे अवधपुरी कुछ विद्वानों के अनुसार प्राचीनकाल में अयोध्या कोसल क्षेत्र के एक विशेष क्षेत्र अवध की राजधानी थी इसलिए इसे 'अवधपुरी' भी कहा जाता था। 'अवध' अर्थात जहां किसी का वध न होता हो। अयोध्या का अर्थ- जिसे कोई युद्ध से जीत न सके।
कहते हैं कि अयोध्या का पुराना नाम भी अयोध्या ही था, क्योंकि वाल्मीकि रामायण में इसका नाम अयोध्या ही वर्णित है और पुराणों में जब प्राचीन सप्त पुरियों का उल्लेख किया जाता है, तब भी उस नामोल्लेख में 'अयोध्या' शब्द का ही उपयोग किया गया है।
अथर्ववेद में है अयोध्या का वर्णन अथर्ववेद में अयोध्या को 'ईश्वर का नगर' बताया गया है, 'अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या'। नंदूलाल डे, द जियोग्राफ़िकल डिक्शनरी ऑफ़, ऐंश्येंट एंड मिडिवल इंडिया के पृष्ठ 14 पर लिखे उल्लेख के अनुसार राम के समय इस नगर का नाम अवध था।