#जीवनसंवाद : जो साथ नहीं हैं (दूसरी किश्त)

  • 5 years ago
पहले अंक में आपने पढ़ा कि हम अपने समीप रहने वालों से धीरे-धीरे अनजाने ही कैसे दूर होते जाते हैं. यह प्रक्रिया इतनी 'धीमी' है कि कई बार हमें जब तक इस बात का एहसास होता है, रिश्तों की नौका डूब चुकी होती है. इसलिए, जीवन के प्रति सचेतन दृष्टिकोण जरूरी है. किसी भी संबंध में हम 'सब कुछ ठीक है', मानकर नहीं चल सकते. किसी भी रिश्ते को कम आंकने, 'यह सदा हमारे पास रहेगा' मानने की गलती नहीं कर सकते. यह खतरा उठाने की बेवजह जरूरत नहीं है.

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