पिछले दिनों अपने गांव पहुंचा. वहां बस से सफर कर रहा था. खचाखच भरी बस में एक आवाज गूंजी! कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया लेकिन तुरंत ही सारे लोग बातचीत में गुम हो गए. जिसे 'चमरा' पुकारा गया था, वो शख्स भी इत्मीनान से बैठा चने खा रहा था. मैं पीछे की सीट पर हिचकोले खाता हुआ अपने स्टूडियो के बारे में सोचने लगा.