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  • 6 years ago
#जीवनसंवाद दूसरों से दुखी! पहले हम दूसरों के साथ सुखी होते थे, अब दूसरों के दुख से सुखी होते हैं. हमारे सुख में तुलना इतनी अधिक शामिल हो गई कि उसका मूल स्वाद ही बदल गया. यह बात सुनने में बहुत अधिक कड़वी लग सकती है, लेकिन यह हमारे जीवन का स्वभाव बनता जा रहा है. हमें जैसे ही कोई खुशी मिलती है हम उस पर मुश्किल से कुछ पल ही प्रसन्न रह पाते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम अगले ही क्षण उसके साथ अपनी हैसियत की गणना में लग जाते हैं. ‌ ‌‌‌

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