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  • 6 years ago
पेड़ आपस में ऐसे गुंथे हुए कि दिन में भी गहरा अंधेरा रहे. हर तरफ से आती अजीबोगरीब आवाजें. आप सांस रोककर कदम रख रहे हों कि तभी पता चले, पेड़ों की एक पांत छोड़ शेर भी साथ चल रहा है. जंगल की जिंदगी में हर पल खतरे हैं. इन्हीं खतरों को जिंदगी के तकरीबन 40 बरस देने वाले अखिलेश कुमार खरे (डिप्टी कंसर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट) अपनी कहानी सुनाते हैं.

नौकरी के शुरुआती दिन थे. मुझे शेर की हलचल ट्रैक करनी थी. जंगल इतना घना कि भीतर अपनी ही आवाज गुम हो जाए. हमारे पास चलने को एक बुलेट थी जो कभी चलती- कभी रुक जाती. तब हमने एक तरीका निकाला. हमारे साथ राजा के वक्त का एक महावत था- चांद खां. मैंने उसे जंगल में झरने के सबसे ऊपर बैठने को कह दिया. वहां से पूरा जंगल दिखता था.

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