नये ज़माने की इस हक़ीकत से अब इनकार नही किया जा सकता. लिव-इन-रीलेशन को लेकर समाज मे बेशक हर तरह की राय हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है की इस तरह की संबंध ना तो पाप है और नाही अपराध. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये भी माना है की लिव-इन-रीलेशन को क़ानूनीज़ामा पहनाने के लिए देश में प्रावधान मौज़ूद नही है. आख़िर क्या है इस तरह के रिश्तों के सामाजिक और क़ानूनी पहलू? इस मुद्दे पर देखिए हमारा खास कार्यक्रम "आज का मुद्दा"
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